हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं
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फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूद
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
हमारी जब हमारी अब हमारी कब से क्या मतलब
यूँ न मेरी बात मानी जाएगी
साक़ी जो दिल से चाहे तो आए वो ज़माना
क्या वस्ल की उम्मीद मिरे दिल को कभी हो
भरी महफ़िल में उन को छेड़ने की क्या ज़रूरत थी
ख़ुदा के डर से हम तुम को ख़ुदा तो कह नहीं सकते
हर सदाए इश्क़ में इक राज़ है
आप जो कहते हैं सब हज़रत-ए-नासेह है बजा
शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
चाहिए थी शम्अ इस तारीक घर के वास्ते