हमारे दिल से क्या अरमान सब इक साथ निकलेंगे
कि क़ैदी मुख़्तलिफ़ मीआ'द के होते हैं ज़िंदाँ में
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ऐ 'नूह' न तर्क-ए-शाएरी हो
आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़
शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
वो बात क्या जो और की तहरीक से हुई
दिल उन्हें देंगे मगर हम देंगे इन शर्तों के साथ
कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
किसी बे-दर्द को ज़ुल्म-ओ-सितम का शौक़ जब होगा
ऐ 'नूह' खुल चले थे वो हम से शब-ए-विसाल
हज़ारों रंज-ए-दिल दे दे के माशूक़ों को झेले हैं
हुस्न-ए-मुत्लक़ का निशाँ का'बे में तो मिलता नहीं
तुम्हारी शोख़-नज़र इक जगह कभी न रही
अपने अपने रंग में यकता मैं ही मैं हूँ तू ही तू है