दिल को तुम शौक़ से ले जाओ मगर याद रहे
ये न मेरा न तुम्हारा न किसी का होगा
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अश्कों के टपकने पर तस्दीक़ हुई उस की
पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
मौसम-ए-गुल अभी नहीं आया
दोनों घरों का लुत्फ़ जुदागाना मिल गया
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़
यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले
महफ़िल में तेरी आ के ये बे-आबरू हुए
गुलशन में कभी हम सुनते थे वो क्या था ज़माना फूलों का
सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे
जिगर की चोट ऊपर से कहीं मा'लूम होती है
ख़ाक हो कर ही हम पहुँच जाते
का'बा हो दैर हो दोनों में है जल्वा उस का