दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
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वो बात क्या जो और की तहरीक से हुई
वाह ये लुत्फ़-ए-सोज़-ए-उल्फ़त किस की बदौलत दिल की बदौलत
ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में
ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं
मैं तरद्दुद से कभी ख़ाली नहीं
मिरा दिल देखो अब या मेरे दुश्मन का जिगर देखो
दिल-सितानी दिलरुबाई पर घमंड
किसी बे-दर्द को ज़ुल्म-ओ-सितम का शौक़ जब होगा
मौसम-ए-गुल अभी नहीं आया
आप का दिल क्या मिरे दिल से मिला
कुछ और बन पड़ी न सवाल-ए-विसाल पर
आप आए बन पड़ी मेरे दिल-ए-नाशाद की