दिखाए पाँच आलम इक पयाम-ए-शौक़ ने मुझ को
उलझना रूठना लड़ना बिगड़ना दूर हो जाना
Allama Iqbal
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Gulzar
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क्या वस्ल के इक़रार पे मुझ को हो ख़ुशी आज
लैला है न मजनूँ है न शीरीं है न फ़रहाद
ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
मैं पस-ए-तर्क-ए-मोहब्बत किसी मुश्किल में नहीं
हज़ारों रंज-ए-दिल दे दे के माशूक़ों को झेले हैं
हर सदाए इश्क़ में इक राज़ है
अल्लाह-रे उन के हुस्न की मोजिज़-नुमाईयाँ
नाकाम-ए-नशात-ए-ऐश-ओ-ख़ुशी हर वक़्त के रंज-ओ-ग़म ने किया
चलो 'नूह' तुम को दिखा लाएँ तुम ने
ऐ 'नूह' खुल चले थे वो हम से शब-ए-विसाल
आप जिन के क़रीब होते हैं