चलो 'नूह' तुम को दिखा लाएँ तुम ने
न मय-ख़ाना देखा न बुत-ख़ाना देखा
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मुझ को दीवाना समझते हैं वो शैदाई भी
अपने अपने रंग में यकता मैं ही मैं हूँ तू ही तू है
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
उन से गर फ़ैज़याब हो जाता
अश्कों के टपकने पर तस्दीक़ हुई उस की
ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं
अच्छे बुरे को वो अभी पहचानते नहीं
माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़
उन का वा'दा उन का पैमाँ उन का इक़रार उन का क़ौल
आप का दिल क्या मिरे दिल से मिला
दर्द-ए-फ़िराक़ दिल से जुदा हो तो जानिए
ताब नहीं सुकूँ नहीं दिल नहीं अब जिगर नहीं