बरहमन उस के हैं शैख़ उस के हैं राहिब उस के
दैर उस का हरम उस का है कलीसा उस का
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साग़र-ब-दस्त हूँ मैं
दोस्ती को बुरा समझते हैं
अल्लाह-रे उन के हुस्न की मोजिज़-नुमाईयाँ
कोई नहीं पछताने वाला
कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूद
कहाँ हम और दुश्मन मिल के दोनों कोई दम बैठे
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
हुस्न को शक्लें दिखानी आ गईं
आज आएँगे कल आएँगे कल आएँगे आज आएँगे
यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले