अश्कों के टपकने पर तस्दीक़ हुई उस की
बे-शक वो नहीं उठते आँखों से जो गिरते हैं
Mohsin Naqvi
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Gulzar
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निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आई
दिल में घुट घुट कर इन्हें रहते ज़माना हो गया
आप जो कहते हैं सब हज़रत-ए-नासेह है बजा
बे-वज्ह मोहब्बत से नहीं बोल रहे हैं
ऐ 'नूह' न तर्क-ए-शाएरी हो
नूह बैठे हैं चारपाई पर
आप आए बन पड़ी मेरे दिल-ए-नाशाद की
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
मेरे जीने का तौर कुछ भी नहीं
कहता है कोई सुन के मिरी आह-ए-रसा को
बरसों रहे हैं आप हमारी निगाह में