ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
फिर ताँक-झाँक क्यूँ है ये फिर देख-भाल क्या
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शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
वो घर से चले राह में रुक गए
अश्कों के टपकने पर तस्दीक़ हुई उस की
मैं कोई हाल-ए-सितम मुँह से कहूँ या न कहूँ
बरसों रहे हैं आप हमारी निगाह में
मुझ को ये फ़िक्र कि दिल मुफ़्त गया हाथों से
आमाज-गाह-ए-तीर-ए-सितम कौन हम कि आप
दूँगा जवाब मैं भी बड़ी शद्द-ओ-मद के साथ
वो ख़ुदाई कर रहे थे जब ख़ुदा होने से क़ब्ल
बे-कसी में यही हूँ पास कहीं
हर तलबगार को मेहनत का सिला मिलता है
दिखाए पाँच आलम इक पयाम-ए-शौक़ ने मुझ को