ऐ 'नूह' आते जाते हैं दोनों घरों में हम
बुत-ख़ाना है क़रीब बहुत ख़ानक़ाह से
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ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईं
मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश
दिल अपना कहीं ठहरे तो हम भी कहीं ठहरें
कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं
पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
अभी कम-सिन हैं मालूमात कितनी
यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले
मेरे जीने का तौर कुछ भी नहीं
क्यूँ आप को ख़ल्वत में लड़ाई की पड़ी है
तिरी तुंद-ख़ूई तिरी कीना-जूई तिरी कज-अदाई तिरी बेवफ़ाई
दर्द-ए-फ़िराक़ दिल से जुदा हो तो जानिए
हम ने ये देख लिया देख लिया देख लिया