अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
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इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
कहाँ हम और दुश्मन मिल के दोनों कोई दम बैठे
दिल हमारी तरफ़ से साफ़ करो
मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़
माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़
दिल में घुट घुट कर इन्हें रहते ज़माना हो गया
उन से सब हाल दग़ाबाज़ कहे देते हैं
जो अच्छे हैं उन की कहानी भी अच्छी
मैं कोई हाल-ए-सितम मुँह से कहूँ या न कहूँ
क्या वस्ल के इक़रार पे मुझ को हो ख़ुशी आज
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस