आप जो कहते हैं सब हज़रत-ए-नासेह है बजा
क्या करूँ ज़ेहन से ये लफ़्ज़ उतर जाते हैं
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फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूद
दूँगा जवाब मैं भी बड़ी शद्द-ओ-मद के साथ
आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़
अपने अपने रंग में यकता मैं ही मैं हूँ तू ही तू है
दिल नज़्र करो ज़ुल्म सहो नाज़ उठाओ
ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में
उस बुत-ए-काफ़िर को उन का ध्यान क्या है कुछ नहीं
कोई उस सितमगर को आगाह कर दे कि बाज़ आए आज़ार देने से झट-पट
हम इश्क़ में उन मक्कारों के बे-फ़ाएदा जलते भुनते हैं
जो अहल-ए-ज़ौक़ हैं वो लुत्फ़ उठा लेते हैं चल फिर कर
दौलत है बड़ी चीज़ हुकूमत है बड़ी चीज़
मोहब्बत का अच्छा नतीजा न देखा