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ये समाँ ये लुत्फ़ ये दिल-चस्प मंज़र देख कर - नूह नारवी कविता - Darsaal

ये समाँ ये लुत्फ़ ये दिल-चस्प मंज़र देख कर

ये समाँ ये लुत्फ़ ये दिल-चस्प मंज़र देख कर

हो गए बे-घर हज़ारों आप का घर देख कर

इस तरफ़ दिल देख कर और उस तरफ़ सर देख कर

पाँव रखना चाहिए तुम को ज़मीं पर देख कर

चैन क्यूँ आने लगा जल्वों को दम भर देख कर

पहले देखूँगा उन्हें फिर हूँगा मुज़्तर देख कर

कह गया वो मेरे उजड़े घर का मंज़र देख कर

ख़ाक पत्थर शाद हूँ मैं ख़ाक पत्थर देख कर

अल्लाह अल्लाह इस क़दर तासीर-ए-सौदा-ए-बहार

दिल की इक इक रग फड़क उठती है नश्तर देख कर

हर घड़ी मुझ को रही सूरत परस्ती ही की धुन

मैं हुआ बेताब अक्सर सुन कर अक्सर देख कर

हसरत-ए-नज़्ज़ारा महशर में हमें लाई तो है

क्या हमारा हाल होगा उन को दिन भर देख कर

क़त्ल की अब क्या ज़रूरत हम तो यूँ ही मर गए

उन के नाज़ुक हाथ में छोटा सा ख़ंजर देख कर

जो दुआ देते थे जीने की मुझे वो दोस्त भी

उठ गए बालीं से मेरा हाल अबतर देख कर

क़स्द था हो कर पलट आएँगे अब टलते नहीं

पाँव फैलाने लगे हम कू-ए-दिलबर देख कर

दिल उन्हें देंगे मगर हम देंगे इन शर्तों के साथ

आज़मा कर जाँच कर सुन कर समझ कर देख कर

एक मिम्बर था वहाँ दो-चार थे ज़र्फ़-ए-वज़ू

हो गई हैरत हमें अल्लाह का घर देख कर

वो समझते हैं ये कोई तालिब-ए-दीदार है

साया-ए-क़ामत को भी रस्ते में अक्सर देख कर

दश्त से बरसों में लाई थी हमें हुब्ब-ए-वतन

और वहशत बढ़ गई उजड़ा हुआ घर देख कर

शश-जिहत के ग़म से मय-ख़्वारों को छुटकारा मिला

ख़ुम सुबू शीशा सुराही जाम साग़र देख कर

दावर-ए-महशर को इतनी जाँच की फ़ुर्सत कहाँ

फेंक देगा वो मिरे इस्याँ का दफ़्तर देख कर

बुत-परस्ती तक पहुँचती है कहाँ नासेह ये बात

ख़ुश हुआ करता हूँ मैं ख़ुश-रंग पत्थर देख कर

ग़म मुझे क्या हो कि तन्हा मुब्तला-ए-ग़म नहीं

मुतमइन है दिल मिरा दुनिया को मुज़्तर देख कर

मेरे दिल में आए वो अपने हरीम-ए-नाज़ से

तीसरा घर अब न देखें दूसरा घर देख कर

'नूह' इस तूफ़ान पर क्या अब्र को तरजीह दूँ

पानी पानी है वो जोश दीदा-ए-तर देख कर

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In Hindi By Famous Poet Nooh Narvi. is written by Nooh Narvi. Complete Poem in Hindi by Nooh Narvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.