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ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में - नूह नारवी कविता - Darsaal

ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में

ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में

तड़पता लोटता दाख़िल हुआ आदाब-ए-महफ़िल में

असर कुछ आप ने देखा हमारे जज़्ब-ए-कामिल का

उधर छूटे कमाँ से और इधर तीर आ गए दिल में

इलाही किस से पूछें हाल हम गोर-ए-ग़रीबाँ का

कि सारे अहल-ए-महफ़िल चुप हैं उस ख़ामोश महफ़िल में

इधर आ कर ज़रा आँखों में आँखें डालने वाले

वो लटका तो बता दे जिस से दिल हम डाल दें दिल में

बदल दे इस तरह ऐ चर्ख़ हुस्न ओ इश्क़ का मंज़र

पस-ए-महमिल हो लैला क़ैस हो लैला के महमिल में

बंधे शर्त-ए-वफ़ा क्यूँकर निभे रस्म-ए-वफ़ा क्यूँकर

यहाँ कुछ और है दिल में वहाँ कुछ और है दिल में

हमारे दिल की दुनिया रह गई ज़ेर-ओ-ज़बर हो कर

क़यामत ढा गया ज़ानू बदलना उन का महफ़िल में

ये क्या अंधेर है कैसा ग़ज़ब है क्या तमाशा है

मिटाओ भी उसी दिल को रहो भी तुम उसी दिल में

तमाशा हम भी देखें डूब कर बहर-ए-मोहब्बत का

अपाहिज की तरह बैठे हैं क्या आग़ोश-ए-साहिल में

तरीक़ा इस से आसाँ और क्या है घर बनाने का

मिरे आग़ोश में आ कर जगह कर लीजिए दिल में

बढ़ा ऐ 'नूह' जब तूफ़ान दरिया-ए-हवादिस का

तो ग़ोते वर्त-ए-ग़म ने दे दिए अफ़्कार-ए-साहिल में

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In Hindi By Famous Poet Nooh Narvi. is written by Nooh Narvi. Complete Poem in Hindi by Nooh Narvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.