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वो कहते हैं आओ मिरी अंजुमन में मगर मैं वहाँ अब नहीं जाने वाला - नूह नारवी कविता - Darsaal

वो कहते हैं आओ मिरी अंजुमन में मगर मैं वहाँ अब नहीं जाने वाला

वो कहते हैं आओ मिरी अंजुमन में मगर मैं वहाँ अब नहीं जाने वाला

कि अक्सर बुलाया बुला कर बिठाया बिठा कर उठाया उठा कर निकाला

नशात-ओ-अलम के सफ़ेद-ओ-सियह ने हमारी निगाहों को हैरत में डाला

इधर रौशनी है उधर तीरगी है कहीं है अंधेरा कहीं है उजाला

मिरा दर्द पूछा मिरा हाल देखा मिरे दिल का अरमान तुम ने निकाला

ख़ुदा और भी दे ज़्यादा मरातिब सिवा और इस से भी हो बोल-बाला

पड़ी नीव आपस में गो दोस्ती की मगर दोस्ती किस तरह निभ सकेगी

उसे है नज़ाकत मुझे है नक़ाहत न वो आने वाला न मैं जाने वाला

शिवाले की जानिब क़दम क्यूँ बढ़ाऊँ नज़र किस लिए सू-ए-मस्जिद उठाऊँ

इधर कह रहा है उधर सुन रहा है कोई कहने वाला कोई सुनने वाला

हमीं पर हुईं क्या हज़ारों जफ़ाएँ हज़ारों पर आईं हज़ारों बलाएँ

ज़माने में कोई सँभलने न पाया किसी शोख़ ने होश जब से सँभाला

वो आए थे पहलू में बेहोश था मैं हुई होगी दिल पर बहुत कुछ नवाज़िश

मगर क्या ख़बर मुझ को अल्लाह जाने तमन्ना निकाली कि काँटा निकाला

हज़ारों बला-नोश इधर भी उधर भी मिली इतनी फ़ुर्सत कहाँ मय-कदे में

रहा काम पीने पिलाने से सब को न धोई सुराही न साग़र खंगाला

मोहब्बत के जोगी सितम के बिरोगी वफ़ा के भिकारी जफ़ा के पुजारी

जहाँ देख पाते हैं जल्वा बुतों का बिछाते हैं अपना वहीं मिर्ग-छाला

चुरा ले गया कोई दिल भी जिगर भी उड़ा ले गया कोई सब्र-ओ-सुकूँ भी

यक़ीं है तमन्ना निकलते निकलते निकल जाएगा आशिक़ों का दिवाला

वतन से निकल कर अकेले चले थे मगर ख़ुश-यक़ीनी के क़ुर्बान जाएँ

मिला दश्त-ए-ग़ुर्बत में इक इक क़दम पर हमें इक न इक जान-पहचान वाला

फ़ुग़ाँ की भी इमदाद हासिल करूँ मैं मोहब्बत को भी कुछ तवज्जोह दिलाऊँ

भरम जज़्ब-ए-दिल का निकलने न पाए निकल आए पर्दे से वो पर्दे वाला

ग़ज़ब ढा गईं सीधी-सादी अदाएँ सितम कर गईं तिरछी बाँकी निगाहें

यही शोर उट्ठा जिधर से वो गुज़रे मुझे मार डाला मुझे मार डाला

इधर तूर पर ग़श में मूसा पड़े हैं उधर हातिफ़-ए-ग़ैब ये कह रहा है

ज़रा खोलिए आप आँखें तो अपनी क़रीब आ गया देखिए दूर वाला

ये मतलब था अरमान उस के न निकलें जो तड़पें तो कुछ और पेचीदगी हो

मिरे ख़ाना-ए-दिल में रंज-ओ-अलम ने तना हर तरफ़ ख़ूब मकड़ी का जाला

तुम्हारा सना-ख़्वाँ तुम्हारा दुआ-गो तुम्हारा फ़िदाई तुम्हारा सलामी

ये क्या कह दिया उस ने वाक़िफ़ नहीं हम वही हाँ वही 'नूह' तूफ़ान वाला

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In Hindi By Famous Poet Nooh Narvi. is written by Nooh Narvi. Complete Poem in Hindi by Nooh Narvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.