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माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़ - नूह नारवी कविता - Darsaal

माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़

माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़

लेकिन वो नज़र तीर-ए-नज़र भी है कोई चीज़

मुमकिन नहीं वो चाहने वालों को न चाहें

इख़्लास-ओ-मोहब्बत का असर भी है कोई चीज़

लुट जाए कि रह जाए रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में

दिल भी है कोई माल जिगर भी है कोई चीज़

उन से जो न उट्ठा था उसे इस ने उठाया

क़ाइल हैं मलाएक कि बशर भी है कोई चीज़

छुपने के लिए शौक़ से पर्दे में छुपें आप

इतना रहे मा'लूम नज़र भी है कोई चीज़

ये कसरत-ए-आज़ार-ओ-ग़म-ओ-रंज कहाँ तक

ऐ शाम शब-ए-हिज्र-ए-सहर भी है कोई चीज़

कहते हो हम आएँगे मगर ज़ुल्म करेंगे

सोचो तुम अगर तो ये मगर भी है कोई चीज़

बाक़ी न रही नावक-ए-दिल-दोज़ की हाजत

ज़ालिम तिरी सीधी सी नज़र भी है कोई चीज़

नाले से कहूँगा कि पहुँच अर्श-ए-बरीं तक

अब तेज़ मुसाफ़िर ये सफ़र भी है कोई चीज़

बेताब उधर आप परेशान इधर हम

आपस की मोहब्बत का असर भी है कोई चीज़

चलती हुई मेरे दिल-ए-बेताब को ले कर

लाखों में वो दुज़्दीदा नज़र भी है कोई चीज़

बे-कार न जाएगा मिरे दिल का तड़पना

नाला है कोई शय तो असर भी है कोई चीज़

आँखों के लिए ज़ौक़-ए-नज़र भी है कोई बात

पहलू के लिए दर्द-ए-जिगर भी है कोई चीज़

अल्लाह रे तिरे हुस्न-ए-ज़िया-बार का जल्वा

ये पेश-ए-नज़र हो तो नज़र भी है कोई चीज़

ऐ 'नूह' शब-ए-माह में पास उस को बिठा कर

कहता हूँ मिरा रश्क-ए-क़मर भी है कोई चीज़

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In Hindi By Famous Poet Nooh Narvi. is written by Nooh Narvi. Complete Poem in Hindi by Nooh Narvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.