मैं तरद्दुद से कभी ख़ाली नहीं
आशिक़ी में फ़ारिग़-उल-बाली नहीं
कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
मैं किसी से बोलने वाली नहीं
लोटता है दिल तड़पता है जिगर
कोई अपने काम से ख़ाली नहीं
'नूह' को तूफ़ान-ए-ग़म से ख़ौफ़ क्या
उस की कश्ती डूबने वाली नहीं
Anwar Masood
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हुस्न को शक्लें दिखानी आ गईं
दिल में घुट घुट कर इन्हें रहते ज़माना हो गया
मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश
ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया
साग़र-ब-दस्त हूँ मैं
लैला है न मजनूँ है न शीरीं है न फ़रहाद
हम से ये कह के वो हाल-ए-शब-ए-ग़म पूछते हैं
हम इश्क़ में उन मक्कारों के बे-फ़ाएदा जलते भुनते हैं
वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़
ख़ुदा के सज्दे बुतों के आगे फिर ऐसे सज्दे कि सर न उट्ठे
सुनते रहे हैं आप के औसाफ़ सब से हम
ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं