Ghazals of Nooh Narvi (page 1)

Ghazals of Nooh Narvi (page 1)
नामनूह नारवी
अंग्रेज़ी नामNooh Narvi
जन्म की तारीख1879
मौत की तिथि1962

यूँ न मेरी बात मानी जाएगी

यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले

ये समाँ ये लुत्फ़ ये दिल-चस्प मंज़र देख कर

ये नया ज़ुल्म नई तर्ज़-ए-जफ़ा है कि नहीं

ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं

ये मतलब है कि मुज़्तर ही रहूँ मैं बज़्म-ए-क़ातिल में

वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़

वो कहते हैं आओ मिरी अंजुमन में मगर मैं वहाँ अब नहीं जाने वाला

वाह ये लुत्फ़-ए-सोज़-ए-उल्फ़त किस की बदौलत दिल की बदौलत

उस हसीं का ख़याल है दिल में

उस बुत-ए-काफ़िर को उन का ध्यान क्या है कुछ नहीं

उन से गर फ़ैज़याब हो जाता

तुम अपने आशिक़ों से कुछ न कुछ दिल-बस्तगी कर लो

तिरी तुंद-ख़ूई तिरी कीना-जूई तिरी कज-अदाई तिरी बेवफ़ाई

ताब नहीं सुकूँ नहीं दिल नहीं अब जिगर नहीं

शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ

सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे

साग़र-ब-दस्त हूँ मैं

रह-ए-तलब में बने वो नश्तर इधर से जाते उधर से आते

पहलू में चैन से दिल-ए-मुज़्तर न रह सका

निखर आई निखार आई सँवर आई सँवार आई

ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईं

नाकाम-ए-नशात-ए-ऐश-ओ-ख़ुशी हर वक़्त के रंज-ओ-ग़म ने किया

मुझ को दीवाना समझते हैं वो शैदाई भी

मोहब्बत का अच्छा नतीजा न देखा

मिरी फ़ुग़ाँ में असर है भी और है भी नहीं

मेरे जीने का तौर कुछ भी नहीं

मिरे दिल की ख़ताएँ भी क़यामत हैं क़यामत हैं

मिरा दिल देखो अब या मेरे दुश्मन का जिगर देखो

माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़

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