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पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का - नोमान शौक़ कविता - Darsaal

पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का

कमरे की सीलन से उक्ता कर

कहीं चली गई है

मेरे हिस्से की धूप

बंधन से डरने वाली चिड़िया

उड़ रही है खोखले आकाश में

और मैं

मैं तो इस्तिक़बाल भी नहीं कर सकता

किसी नई आहट का

क्यूँकि डर गया हूँ मैं

आते हुए क़दमों की

लौटती हुई बाज़गश्त से

मेरी आँखों में जम गई है

उदास लू भरी दोपहर

हिमाला की चोटी पर जमने वाली बर्फ़ की तरफ़

मैं भूल चुका हूँ

अमलतास के फूल से अपना पहला मुकालिमा

कमरे के किस दरवाज़े से

खिड़की से या रौज़न से

दाख़िल हुई थी सूरज की पहली किरन

मुझे कुछ याद नहीं

एक बेहद मसरूफ़ लम्हे के लिए

सँभाल रक्खा था मैं ने

बहुत सारा ख़ाली वक़्त

अपनी आँखों में

अपने होंटों पर

अपनी बाँहों के टूटते हुए घेरे में

बे-हँगम ख़्वाबों के बिखरते दाएरे में

किसी बसंती जिस्म के पहले त्यौहार में

अधूरा छोड़ आया मैं अपना रक़्स

मेरे इश्क़ से कहीं ज़ियादा लम्बी थी

मेरे प्रेम पत्र की भूमिका

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In Hindi By Famous Poet Nomaan Shauque. is written by Nomaan Shauque. Complete Poem in Hindi by Nomaan Shauque. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.