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वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है - नोमान शौक़ कविता - Darsaal

वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है

वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है

निकल भी आए तो फ़ुर्सत से कम निकलता है

मैं ख़ानक़ाह के बाहर खड़ा हूँ मुद्दत से

यहाँ भी काम अक़ीदत से कम निकलता है

फ़लक की सैर के पैग़ाम आते रहते हैं

बदन ही ख़ाक की दहशत से कम निकलता है

सँभल सँभल के तो चलता है वो सितारा भी

तुम्हारी जैसी नज़ाकत से कम निकलता है

मैं नापता हूँ तो हर बार रक़्बा-ए-अफ़्लाक

मिरी निगाह की वुसअत से कम निकलता है

हमेशा इश्क़ को ही माननी पड़ी है हार

हमेशा हुस्न ज़रूरत से कम निकलता है

ये नफ़रतों को मिटाने की ज़िद रहे बाक़ी

मगर ये काम मोहब्बत से कम निकलता है

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In Hindi By Famous Poet Nomaan Shauque. is written by Nomaan Shauque. Complete Poem in Hindi by Nomaan Shauque. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.