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तसव्वुर कार-फ़रमा था कि लज़्ज़त थी कहानी की - निज़ामुद्दीन निज़ाम कविता - Darsaal

तसव्वुर कार-फ़रमा था कि लज़्ज़त थी कहानी की

तसव्वुर कार-फ़रमा था कि लज़्ज़त थी कहानी की

इसी तस्वीर ने आँखों पे जैसे हुक्मरानी की

मिरी परवाज़ का मंज़र अभी तीरों से छलनी है

लहू में तर-ब-तर है दास्ताँ नक़्ल-ए-मकानी की

लबों पर बर्फ़ जम जाए तो इस्तिफ़्सार क्या मा'नी

कि शोर-ओ-ग़ुल फ़क़त तम्हीद है शोला-बयानी की

क़दम रखते ही जैसे खुल गया दलदल में दरवाज़ा

अजब कारीगरी देखी यहाँ मिट्टी में पानी की

दिखाई राह साहिल की उन्हें पुर-पेच मौजों ने

उसी तूफ़ान ने कश्ती के हक़ में बादबानी की

बहुत ज़रख़ेज़ मिट्टी है 'निज़ाम' अपने बदन में भी

हवस ने फूल महकाए लहू ने बाग़बानी की

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In Hindi By Famous Poet Nizamuddin Nizam. is written by Nizamuddin Nizam. Complete Poem in Hindi by Nizamuddin Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.