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हैरत और इज़्तिराब को हम-सर करूँगा मैं - निज़ामुद्दीन निज़ाम कविता - Darsaal

हैरत और इज़्तिराब को हम-सर करूँगा मैं

हैरत और इज़्तिराब को हम-सर करूँगा मैं

देखूँगा तुझ को आँख को पत्थर करूँगा मैं

आँधी को ओढ़ लूँगा ज़रूरत पड़ी अगर

तपती हुई चटान को बिस्तर करूँगा मैं

लोगों को एक शाम दिखाऊँगा मो'जिज़ा

साए को अपने क़द के बराबर करूँगा मैं

साँपों को दोस्तों से भी डसवाऊंगा कभी

देखोगे ये तमाशा सड़क पर करूँगा मैं

या अपनी बंद मुट्ठियाँ देखूँगा ग़ौर से

वर्ना ख़याल-ए-दस्त-ए-सिकन्दर करूँगा मैं

'ग़ालिब' के बा'द उर्दू ग़ज़ल मर गई 'निज़ाम'

मुर्दे पे ऐसा कौन सा मंतर करूँगा मैं

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In Hindi By Famous Poet Nizamuddin Nizam. is written by Nizamuddin Nizam. Complete Poem in Hindi by Nizamuddin Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.