तुम से कुछ कहने को था भूल गया
तुम से कुछ कहने को था भूल गया
हाए क्या बात थी क्या भूल गया
भोली भोली जो वो सूरत देखी
शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा भूल गया
दिल में बैठा है ये ख़ौफ़ उस बुत का
हाथ उट्ठे कि दुआ भूल गया
ख़ुश हूँ इस वादा-फ़रामोशी से
उस ने हँस कर तो कहा भूल गया
हाल-ए-दिल सुनते ही किस लुत्फ़ से हाए
कुछ कहा कुछ जो रहा भूल गया
वाँ किस उम्मीद पे फिर जाए कोई
ऐ दिल उस बात को क्या भूल गया
होश में आ के सुना कुछ क़ासिद
याद क्या है तुझे क्या भूल गया
अहद क्या था मुझे कुछ याद नहीं
यही गर भूल गया भूल गया
मैं इधर भूल गया रंज-ए-फ़िराक़
वो उधर उज़्र-ए-जफ़ा भूल गया
याद में एक सनम की नासेह
मैं तो सब कुछ ब-ख़ुदा भूल गया
ख़ैर मुझ पर तो जो गुज़री गुज़री
शुक्र वो तर्ज़-ए-वफ़ा भूल गया
याद उस की है मिरी ज़ीस्त 'निज़ाम'
मौत आई जो ज़रा भूल गया
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