महफ़िल में आते जाते हैं इंसाँ नए नए
महफ़िल में आते जाते हैं इंसाँ नए नए
अब तो चलन लिए हैं मिरी जाँ नए नए
उस ज़ुल्फ़ ओ रुख़ के इश्क़ का चर्चा हुआ ये कुछ
हैराँ नए नए हैं परेशाँ नए नए
आ आ के अपनी अपनी सुनाता है हर कोई
ज़ख़्म-ए-जिगर पे हैं नमक-अफ़्शाँ नए नए
मुझ को सुना के कहते हैं लोगों को इस से क्या
अंदाज़ हम ने सीखे हैं हाँ हाँ नए नए
आ जाएँ हम भी याद किसी बात पर कभी
आशिक़ हुए हैं अब तो मिरी जाँ नए नए
हर दम नई नई है ख़लिश मेरी जान को
लाती है रंज-ओ-ग़म शब-ए-हिज्राँ नए नए
बातों पर उन की क्यूँ न यक़ीन आए फिर मुझे
क़समें नई नई हैं तो पैमाँ नए नए
गर अब के वस्ल हो तो न मानूँ में एक भी
दिल के निकालूँ हसरत-ओ-अरमाँ नए नए
सौ सौ तरह सताती है इक इक की याद अब
शब आप ने किए थे जो एहसाँ नए नए
किस किस की रोज़ रोज़ ख़ुशामद किया करें
होते हैं उन के दर पे तो दरबाँ नए नए
उम्मीद भी कभी कभी नौमीदी है मुझे
दिखलाती रंग है शब-ए-हिज्राँ नए नए
कोई तो आज आएगा फिर किस लिए 'निज़ाम'
तज्वीज़ें हैं नई नई सामाँ नए नए
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