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हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया - नियाज़ जयराजपुरी कविता - Darsaal

हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया

हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया

मैं रेत पर तिरा चेहरा बना के बैठ गया

सरापा-नाज़ वो महफ़िल में आ के बैठ गया

न जाने कितनों के तोते उड़ा के बैठ गया

था इंतिज़ार मुझे जिस के लौट आने का

किसी को और वो अपना बना के बैठ गया

भटक रही थी हवा कासा-ए-तलब ले कर

सो रास्ते में दिया मैं जला के बैठ गया

वो एक बुलबुला जो सत्ह-ए-आब पर उभरा

बिसात मेरी वो मुझ को बता के बैठ गया

कुरेदने से न बाज़ आया राख माज़ी की

वो आख़िर उँगलियाँ अपनी जला के बैठ गया

मलाल-ओ-रश्क है 'जीराजपूरी' को उस का

'नियाज़' से भी कोई दिल लगा के बैठ गया

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In Hindi By Famous Poet Niyaz Jairajpuri. is written by Niyaz Jairajpuri. Complete Poem in Hindi by Niyaz Jairajpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.