हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया
हवा का झोंका भी नज़रें जमा के बैठ गया
मैं रेत पर तिरा चेहरा बना के बैठ गया
सरापा-नाज़ वो महफ़िल में आ के बैठ गया
न जाने कितनों के तोते उड़ा के बैठ गया
था इंतिज़ार मुझे जिस के लौट आने का
किसी को और वो अपना बना के बैठ गया
भटक रही थी हवा कासा-ए-तलब ले कर
सो रास्ते में दिया मैं जला के बैठ गया
वो एक बुलबुला जो सत्ह-ए-आब पर उभरा
बिसात मेरी वो मुझ को बता के बैठ गया
कुरेदने से न बाज़ आया राख माज़ी की
वो आख़िर उँगलियाँ अपनी जला के बैठ गया
मलाल-ओ-रश्क है 'जीराजपूरी' को उस का
'नियाज़' से भी कोई दिल लगा के बैठ गया
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