बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें
बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें
बिखरना ही है तो हम क्यूँ न मुश्कबू हो लें
चलें हैं इश्क़ की करने अगर इबादत हम
बहा के अश्क ज़रा पहले बा-वज़ू हो लें
छुपा के ख़्वाबों ख़यालों को दिल के गोशे में
ज़रा सी देर हक़ीक़त से रू-ब-रू हो लें
बरस गए तो भला आब के सिवा क्या हैं
उन आँसुओं की है क़ीमत की जो लहू हो लें
किताब-ए-दिल को वरक़-दर-वरक़ दिखा देंगे
ज़रा हम आप से तुम और तुम से तू हो लें
न मुझ में मैं ही रहूँ और न तुझ में तू ही रहे
मिलें कुछ ऐसे कि दोनों ही हू-ब-हू हो लें
सफ़र वफ़ा का अधूरा अधूरा है जान लो 'नायाब'
कि जब तलक न दिल-ओ-जाँ लहू लहू हो लें
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