बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए
बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए
इक ज़रा कोशिश भी की तो और पुर-नम हो गए
ये हुआ मा'मूल कि मानूस-ए-ग़म दिल हो गया
हम समझ बैठे हमारे दर्द कुछ कम हो गए
कैफ़ियत इज़हार-ए-सोज़-ए-दिल की कुछ ऐसी हुई
आते आते लब तलक अल्फ़ाज़ मुबहम हो गए
वक़्त की चारागरी भी देखिए क्या ख़ूब है
ग़म दवा में ढल गया और ज़ख़्म महरम हो गए
गर्दिशों के अब्र की इक बूँद तन पर क्या गिरी
कल जो थे शोला-सिफ़त वो आज शबनम हो गए
थे हमारे ख़ूँ के क़तरे ख़ाक की सूरत ख़ुदा
तेरे नक़्श-ए-पा को छू कर आब-ए-ज़मज़म हो गए
दुश्मनी बढ़ने का यूँ 'नायाब' ग़म हम को नहीं
हाँ मगर अफ़्सोस ये है दोस्त कुछ कम हो गए
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