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यहाँ पर मिरा कुछ भी था ही नहीं - निशांत श्रीवास्तव नायाब कविता - Darsaal

यहाँ पर मिरा कुछ भी था ही नहीं

यहाँ पर मिरा कुछ भी था ही नहीं

सो घाटा ज़रा भी हुआ ही नहीं

रगों तक में ख़ुशबू तिरी जज़्ब की

हवा पे भरोसा किया ही नहीं

मिरे दिल की हालत जो थी वो रही

ये पौदा शजर तो हुआ ही नहीं

वो क्या माजरा था खुला ही नहीं

निशाने पे पत्थर लगा ही नहीं

कहानी दिए की बहुत ख़ूब है

मगर इस में ज़िक्र-ए-हवा ही नहीं

जवाबों के चेहरों पे हैं उलझनें

सवालों का अब तक पता ही नहीं

सफ़र का मैं आग़ाज़ कैसे करूँ

मिरे हक़ में कोई दुआ ही नहीं

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In Hindi By Famous Poet Nishant Shrivastava Nayab. is written by Nishant Shrivastava Nayab. Complete Poem in Hindi by Nishant Shrivastava Nayab. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.