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ज़िंदगी कारवाँ का हिस्सा है - निसार तुराबी कविता - Darsaal

ज़िंदगी कारवाँ का हिस्सा है

ज़िंदगी कारवाँ का हिस्सा है

हिज्र की दास्ताँ का हिस्सा है

शक्ल भी तो है अक्स की बांदी

नक़्श भी तो निशाँ का हिस्सा है

अपना अपना मक़ाम होता है

ज़र्रा ज़र्रा जहाँ का हिस्सा है

किस लिए मेहरबाँ नहीं होती

क्या ज़मीं आसमाँ का हिस्सा है

कस लिए दे रहे हो तावीलें

वो जहाँ है वहाँ का हिस्सा है

फिर तो ख़ाना-बदोशी बेहतर है

कि जब अज़िय्यत मकाँ का हिस्सा है

फिर तो नाव लगे किनारे भी

सम्त अगर बादबाँ का हिस्सा है

तू ही फ़िक्र-ए-अयाँ का मरकज़ भी

तू ही हर्फ़-ए-निहाँ का हिस्सा है

लब पे तेरे जो आ के बिखरा है

वो भी मेरे बयाँ का हिस्सा है

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In Hindi By Famous Poet Nisar Turabi. is written by Nisar Turabi. Complete Poem in Hindi by Nisar Turabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.