Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_2216d7563ff738ab1d968f5477f05a2b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
नज़र उठी है जिधर भी उधर तमाशा है - निसार तुराबी कविता - Darsaal

नज़र उठी है जिधर भी उधर तमाशा है

नज़र उठी है जिधर भी उधर तमाशा है

बशर के वास्ते जैसे बशर तमाशा है

ज़मीं ठहरती नहीं अपने पाँव के नीचे

पड़ाव अपना है जिस में वो घर तमाशा है

यहाँ क़याम करेगा न मुस्तक़िल कोई

ज़रा सी देर रुकेगा अगर तमाशा है

फ़िगार हो के भी रक्खेगा आबरू-ए-नुमू

निगाह-ए-ज़र में जो दस्त-ए-हुनर तमाशा है

ऐ मौसमों के ख़ुदा भेद ये खुले आख़िर

निगाह-ए-शाख़ में कैसे शजर तमाशा है

न बाल-ओ-पर हैं मयस्सर न इज़्न-ए-गोयाई

तो इस के मअ'नी हैं अपनी सहर तमाशा है

मिला 'निसार-तुराबी' सरा-ए-हैरत से

वो आइना जिसे अपनी नज़र तमाशा है

(429) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nisar Turabi. is written by Nisar Turabi. Complete Poem in Hindi by Nisar Turabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.