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शाइरी मेरी तपस्या लफ़्ज़ है बरगद मिरा - निसार नासिक कविता - Darsaal

शाइरी मेरी तपस्या लफ़्ज़ है बरगद मिरा

शाइरी मेरी तपस्या लफ़्ज़ है बरगद मिरा

ये ज़मीं सारी ज़मीं मुशफ़िक़ ज़मीं मा'बद मिरा

मैं गया की रौशनी हूँ मैं हिरा का नूर हूँ

तू फ़ना के हाथ से क्यूँ नापता है क़द मिरा

ध्यान के गूँगे सफ़र से भी निकल जाऊँ मगर

रास्ता रोके खड़ी है साँस की सरहद मिरा

उम्र-भर सूरज था सर पर धूप थी मेरा लिबास

अब ये ख़्वाहिश है घनी छाँव में हो मरक़द मिरा

कह दिया था मैं पुरानी सोच का शजरा नहीं

आज तक मुँह देखते हैं मेरे ख़ाल-ओ-ख़द मिरा

मुझ से आगे भी हैं कुछ ताज़ा सदाओं के अलम

मैं 'ज़फ़र' का लाडला हूँ पेश-रौ 'अमजद' मिरा

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In Hindi By Famous Poet Nisar Nasik. is written by Nisar Nasik. Complete Poem in Hindi by Nisar Nasik. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.