अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी
शबनम है कि रोया करती है बादल हैं कि बरसा करते हैं
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बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
सुन ऐ कोह-ओ-दमन को सब्ज़ ख़िलअत बख़्शने वाले
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
निगाहों से ना-आश्ना चंद जल्वे
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
सुब्ह बिछड़ कर शाम का व'अदा शाम का होना सहल नहीं
बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम नहीं है
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
ये दिल वालों से पूछो इस को दिल वाले समझते हैं
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ