ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है
ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है
हुस्न वालो ये शरारत क्या है
इक उचटती सी तग़ाफ़ुल की निगाह
हीला-ए-अर्ज़-ए-मोहब्बत क्या है
ख़ुद ही नादिम हूँ वफ़ा पर अपनी
उस तबस्सुम की ज़रूरत क्या है
मुझ को बोहतान-ए-हवस भी मंज़ूर
कौन समझेगा हक़ीक़त क्या है
निकहत-ओ-नूर के साँसों का कमाँ
वर्ना तू क्या मिरी सूरत क्या है
क़ामत-ए-यार की बिगड़ी हुई शक्ल
फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-क़यामत क्या है
किस की हिम्मत कि तुझे साथ लगाए
तू ब-जुज़ मौज-ए-लताफ़त क्या है
रब्त महसूस की उलझन के सिवा
आप का जज़्बा-ए-नफ़रत क्या है
अश्क-ए-ग़म बूँद है पानी की मगर
ये भी मा'लूम है क़ीमत क्या है
दामन-ए-नाज़ की झाड़ी हुई गर्द
और इंसाँ की हक़ीक़त क्या है
मैं कि इक गौहर-ए-आलूदा-ए-ख़ाक
कुछ न समझा मिरी क़ीमत क्या है
तालिब-ए-दाद-ए-सुख़न क्यूँ हो 'निसार'
आप के शे'र में जिद्दत क्या है
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