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ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है - कविता - Darsaal

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

हुस्न वालो ये शरारत क्या है

इक उचटती सी तग़ाफ़ुल की निगाह

हीला-ए-अर्ज़-ए-मोहब्बत क्या है

ख़ुद ही नादिम हूँ वफ़ा पर अपनी

उस तबस्सुम की ज़रूरत क्या है

मुझ को बोहतान-ए-हवस भी मंज़ूर

कौन समझेगा हक़ीक़त क्या है

निकहत-ओ-नूर के साँसों का कमाँ

वर्ना तू क्या मिरी सूरत क्या है

क़ामत-ए-यार की बिगड़ी हुई शक्ल

फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-क़यामत क्या है

किस की हिम्मत कि तुझे साथ लगाए

तू ब-जुज़ मौज-ए-लताफ़त क्या है

रब्त महसूस की उलझन के सिवा

आप का जज़्बा-ए-नफ़रत क्या है

अश्क-ए-ग़म बूँद है पानी की मगर

ये भी मा'लूम है क़ीमत क्या है

दामन-ए-नाज़ की झाड़ी हुई गर्द

और इंसाँ की हक़ीक़त क्या है

मैं कि इक गौहर-ए-आलूदा-ए-ख़ाक

कुछ न समझा मिरी क़ीमत क्या है

तालिब-ए-दाद-ए-सुख़न क्यूँ हो 'निसार'

आप के शे'र में जिद्दत क्या है

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