मचा हुआ है ख़ुदाओं की अन-कही का शोर
मचा हुआ है ख़ुदाओं की अन-कही का शोर
मगर वो गूँज कि खा जाएगी सभी का शोर
तमाम रात महकता था उस की टेबल पर
गुलाब-ए-ताज़ा की ख़ुश्बू में फ़रवरी का शोर
शजर की ताब-ए-समाअ'त पे दाद बनती है
ये सुनता आया है सदियों से आदमी का शोर
ऐ ना-ख़ुदाओ समुंदर को मत सुना देना
हमारी नाव में अस्बाब की कमी का शोर
बड़े सलीक़े से आ कर क़ज़ा ने चाट लिया
ज़मीं के सहन में बरपा था ज़िंदगी का शोर
बस एक बार ज़माने के दर पे दस्तक दी
अब ऐसे कौन मचाए घड़ी घड़ी का शोर
(464) Peoples Rate This