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मेरी चाहत की बहुत लम्बी सज़ा दो मुझ को - निकहत इफ़्तिख़ार कविता - Darsaal

मेरी चाहत की बहुत लम्बी सज़ा दो मुझ को

मेरी चाहत की बहुत लम्बी सज़ा दो मुझ को

कर्ब-ए-तन्हाई में जीने की दुआ दो मुझ को

फ़न तुम्हारा तो किसी और से मंसूब हुआ

कोई मेरी ही ग़ज़ल आ कर सुना दो मुझ को

हाल बेहाल है तारीक है मुस्तक़बिल भी

बन पड़े तुम से तो माज़ी मिरा ला दो मुझ को

आख़िरी शम्अ हूँ मैं बज़्म-ए-वफ़ा की लोगो

चाहे जलने दो मुझे चाहे बुझा दो मुझ को

ख़ुद को रख के मैं कहीं भूल गई हूँ शायद

तुम मिरी ज़ात से एक बार मिला दो मुझ को

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In Hindi By Famous Poet Nikhat Iftikhar. is written by Nikhat Iftikhar. Complete Poem in Hindi by Nikhat Iftikhar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.