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ऐ मौज-ए-सबा सोज़-ए-मुजस्सम उसे कहना - निकहत बरेलवी कविता - Darsaal

ऐ मौज-ए-सबा सोज़-ए-मुजस्सम उसे कहना

ऐ मौज-ए-सबा सोज़-ए-मुजस्सम उसे कहना

मुमकिन है वो पूछे मिरा आलम उसे कहना

चाहा मिरे हालात ने पैहम उसे कहना

लेकिन न हुई प्यार की लौ कम उसे कहना

इक हम ही नहीं शाकी-ए-आलम उसे कहना

अब अहल-ए-तरब को भी है ये ग़म उसे कहना

शायद कभी पड़ जाए किसी तौर ज़रूरत

मिलते हैं सर-ए-राहगुज़र हम उसे कहना

तू किस लिए नाराज़ हुआ अहल-ए-वफ़ा से

दुनिया तो हमेशा से है बरहम उसे कहना

कहना तो बहुत कुछ है मगर मस्लहत-ए-वक़्त

बे-आब से हैं शोला-ओ-शबनम उसे कहना

माना कि मिरे दम से नहीं बज़्म की रौनक़

फिर भी तो ग़नीमत है मिरा दम उसे कहना

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In Hindi By Famous Poet Nikhat Barelvi. is written by Nikhat Barelvi. Complete Poem in Hindi by Nikhat Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.