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अब उस की याद सताने को बार बार आए - निकहत बरेलवी कविता - Darsaal

अब उस की याद सताने को बार बार आए

अब उस की याद सताने को बार बार आए

वो ज़िंदगी जो तिरे शहर में गुज़ार आए

ये बेबसी भी नहीं लुत्फ़-ए-इख़्तियार से कम

ख़ुदा करे न कभी दिल पे इख़्तियार आए

क़दम क़दम पे गुलिस्ताँ खिले थे रस्ते में

अजीब लोग हैं हम भी कि सू-ए-दार आए

न चहचहे न सुरूद-ए-शगुफ़्तगी न महक

किसे अब ऐसी बहारों पे ए'तिबार आए

जुनूँ को अब के गरेबाँ से क्या मिलेगा कि हम

ब-फ़ैज़-ए-मौसम-ए-गुल पैरहन उतार आए

तिरी लगन ने ज़माने की ख़ाक छनवाई

तिरी तलब में तमाम आरज़ुएँ हार आए

ये फ़ख़्र कम तो नहीं कू-ए-यार में 'निकहत'

न शर्मसार गए थे न शर्मसार आए

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In Hindi By Famous Poet Nikhat Barelvi. is written by Nikhat Barelvi. Complete Poem in Hindi by Nikhat Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.