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अब अहल-ए-दिल हैं कि नायाब होते जाते हैं - निकहत बरेलवी कविता - Darsaal

अब अहल-ए-दिल हैं कि नायाब होते जाते हैं

अब अहल-ए-दिल हैं कि नायाब होते जाते हैं

ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब होते जाते हैं

तुम्हारे आने से कुछ इज़्तिराब कम होता

ये क्या कि और भी बेताब होते जाते हैं

सुकूँ-मआब समझते थे जिन किनारों को

सिमट के हल्क़ा-ए-गिर्दाब होते जाते हैं

हमें भी रात को दिन कहना आता जाता है

कि हम भी हामिल-ए-आदाब होते जाते हैं

हमें मिले न मिले ज़िंदगी मगर 'निकहत'

सुना है ज़ीस्त के अस्बाब होते जाते हैं

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In Hindi By Famous Poet Nikhat Barelvi. is written by Nikhat Barelvi. Complete Poem in Hindi by Nikhat Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.