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गर्मी-ए-इश्क़ के बग़ैर लुत्फ़-ए-हयात राएगाँ - निहाल सेवहारवी कविता - Darsaal

गर्मी-ए-इश्क़ के बग़ैर लुत्फ़-ए-हयात राएगाँ

गर्मी-ए-इश्क़ के बग़ैर लुत्फ़-ए-हयात राएगाँ

इश्क़ है ज़िंदगी का रूप इश्क़ से ज़िंदगी जवाँ

हाए वो चंद साअतें गुज़रीं जो तेरे क़ुर्ब में

रश्क से देखती रही जिन को हयात-ए-जावेदाँ

उफ़-री मनाज़िल-ए-बुलंद तेरे हरीम-ए-नाज़ की

पा-ए-तलब को कितने तय करने पड़े हैं आसमाँ

बर्क़ की दस्तरस से दूर अस्र-ए-नौ के ऐ तुयूर

और बुलंद आशियाँ और बुलंद आशियाँ

गर्म हुसूल जू-ए-शीर हाँ यूँही मर्द-ए-तेशा-गीर

तेशा-ज़नी है दहर में अस्ल हयात-ए-कामरां

मोहतसिब-ए-शराब तो बज़्म-ए-जहाँ में हैं बहुत

ये भी कहो कि है कोई मोहतसिब-ए-ग़म-ए-निहाँ

जज़्बा-ए-हिम्मत ऐ 'निहाल' जब हो मिरा शरीक-ए-हाल

मेरे लबों पे आए क्यूँ शिकवा-ए-गर्दिश-ए-ज़माँ

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In Hindi By Famous Poet Nihal Sevharvi. is written by Nihal Sevharvi. Complete Poem in Hindi by Nihal Sevharvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.