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बहार का रूप भी निगाहों में इक फ़रेब-ए-बहार सा है - निहाल सेवहारवी कविता - Darsaal

बहार का रूप भी निगाहों में इक फ़रेब-ए-बहार सा है

बहार का रूप भी निगाहों में इक फ़रेब-ए-बहार सा है

हयात में दिलकशी नहीं है हयात में इंतिशार सा है

ज़माना क्या देखिए दिखाए न जाने क्या इंक़लाब आए

फ़लक के तेवर में ख़शमगीं से ज़मीं के दिल में ग़ुबार सा है

कमाल-ए-दीवानगी तो जब है रहे न एहसास-ए-जैब-ओ-दामन

अगर है एहसास-ए-जैब-ओ-दामन तो फिर जुनूँ होशियार सा है

कुछ आज ऐसी ही जी पे गुज़री दबी हुई थी जो चोट उभरी

जिसे सँभाले हुआ था दिल में वो नाला बे-इख़्तियार सा है

अभी उमीद-ओ-वफ़ा न तोड़ो सियासत-ए-दिलबरी न छोड़ो

कभी जो फ़िर्दौस-ए-रंग-ओ-बू था वो एक उजड़ा दयार सा है

'निहाल' को बे पिए है मस्ती है मुफ़्त इल्ज़ाम-ए-मय-परस्ती

है आम इस शहर में रिवायत ये शख़्स कुछ बादा-ख़्वार सा है

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In Hindi By Famous Poet Nihal Sevharvi. is written by Nihal Sevharvi. Complete Poem in Hindi by Nihal Sevharvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.