लिखा जो वस्फ़-ए-दहन ग़ैब से निदा आई
लिखा जो वस्फ़-ए-दहन ग़ैब से निदा आई
अदम का क़स्द किया तेरे दिल में क्या आई
जो नख़्ल-बंद-ए-अज़ल का हुआ चमन में ख़याल
नज़र गुलों में अजब शान-ए-किब्रिया आई
ग़रीक़-ए-बहर-ए-मोहब्बत की ली ख़बर न कभी
ख़ुदा से शर्म न कुछ तुझ को नाख़ुदा आई
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