मशीन
मशीन चल रही हैं
नीले पीले लाल लोहे की मशीनों में
हज़ारों आहनी पुर्ज़े
मुक़र्रर हरकतों के दाएरों में
चलते फिरते हैं
सहर से शाम तक पुर-शोर आवाज़ें उगलते हैं
बड़ा छोटा हर इक पुर्ज़ा
कसा है कील-पंचों से
हज़ारों घूमते पुर्ज़ों को अपने पेट में डाले
मशीनें सोचती हैं
चीख़ती हैं
जंग करती हैं
मशीनें चल रही हैं
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