सुब्ह की धूप
धुली शाम का रूप
फ़ाख़्ताओं की तरह सोच में डूबे तालाब
अजनबी शहर के आकाश
अँधेरों की किताब
पाठशाला में चहकते हुए मासूम गुलाब
घर के आँगन की महक
बहते पानी की खनक
सात रंगों की धनक
तुम को देखा तो नहीं है
लेकिन
मेरी तंहाई में
ये रंग-बिरंगे मंज़र
जो भी तस्वीर बनाते हैं
वो!
तुम जैसी है