वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है
वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है
मगर वो एक है क्यूँ उस से ये गिला भी है
हमेशा मंदिर-ओ-मस्जिद में वो नहीं रहता
सुना है बच्चों में छुप कर वो खेलता भी है
न जाने एक में उस जैसे और कितने हैं
वो जितना पास है उतना ही वो जुदा भी है
वही अमीर जो रोज़ी-रसाँ है आलम का
फ़क़ीर बन के कभी भीक माँगता भी है
अकेला होता तो कुछ और फ़ैसला होता
मिरी शिकस्त में शामिल मिरी दुआ भी है
(403) Peoples Rate This