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उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ - निदा फ़ाज़ली कविता - Darsaal

उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ

उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ

रात के बा'द दिन आज के बा'द कल जो हुआ सो हुआ

जब तलक साँस है भूक है प्यास है ये ही इतिहास है

रख के काँधे पे हल खेत की ओर चल जो हुआ सो हुआ

ख़ून से तर-ब-तर कर के हर रहगुज़र थक चुके जानवर

लकड़ियों की तरह फिर से चूल्हे में जल जो हुआ सो हुआ

जो मरा क्यूँ मरा जो लुटा क्यूँ लुटा जो जला क्यूँ जला

मुद्दतों से हैं गुम इन सवालों के हल जो हुआ सो हुआ

मंदिरों में भजन मस्जिदों में अज़ाँ आदमी है कहाँ

आदमी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ सो हुआ

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In Hindi By Famous Poet Nida Fazli. is written by Nida Fazli. Complete Poem in Hindi by Nida Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.