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न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है - निदा फ़ाज़ली कविता - Darsaal

न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है

न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है

तमाम उम्र मुसाफ़िर सफ़र में रहता है

लड़ाई देखे हुए दुश्मनों से मुमकिन है

मगर वो ख़ौफ़ जो दीवार-ओ-दर में रहता है

ख़ुदा तो मालिक-ओ-मुख़्तार है कहीं भी रहे

कभी बशर में कभी जानवर में रहता है

अजीब दौर है ये तय-शुदा नहीं कुछ भी

न चाँद शब में न सूरज सहर में रहता है

जो मिलना चाहो तो मुझ से मिलो कहीं बाहर

वो कोई और है जो मेरे घर में रहता है

बदलना चाहो तो दुनिया बदल भी सकती है

अजब फ़ुतूर सा हर वक़्त सर में रहता है

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In Hindi By Famous Poet Nida Fazli. is written by Nida Fazli. Complete Poem in Hindi by Nida Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.