हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है
मोहब्बत इक ज़रूरी हादिसा है
गरजती आँधियाँ ज़ाएअ' हुई हैं
ज़मीं पे टूट के आँसू गिरा है
निकल आए किधर मंज़िल की धुन में
यहाँ तो रास्ता ही रास्ता है
दुआ के हाथ पत्थर हो गए हैं
ख़ुदा हर ज़ेहन में टूटा पड़ा है
तुम्हारा तजरबा शायद अलग हो
मुझे तो इल्म ने भटका दिया है