याद हर पल तुझ को करने का सिला पाने लगा
याद हर पल तुझ को करने का सिला पाने लगा
मुझ को आईना तेरा चेहरा ही दिखलाने लगा
दिल की बंजर सी ज़मीं पर जब तू बरसा प्यार से
ज़र्रा ज़र्रा खिल के इस का झूमने गाने लगा
जिस्म के ही राज-पथ पर ढूँडता था मैं जिसे
दिल की पगडंडी पे अब वो सुख नज़र आने लगा
हसरतों की इमलियाँ गिरने लगीं तब पेड़ से
हौसले का जब तू पत्थर उस पे बरसाने लगा
मेरे घर से तेरे घर का रास्ता मुश्किल तो है
पर मिलन की चाह से आसान हो जाने लगा
सोचने में वक़्त 'नीरज' मत लगाना भूल कर
प्यार क़ातिल से भी कर गर वो तुझे भाने लगा
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