इक फ़क़त उस के रूठ जाने पर
एक भी शय नहीं ठिकाने पर
मौसम-ए-गुल है आशियाने पर
इक फ़क़त उस के मुस्कुराने पर
कोई मुझ से ख़फ़ा नहीं होता
तुम मिरे दोस्त हो पुराने पर
मुद्दतों बा'द कोई आया है
रौशनी है ग़रीब-ख़ाने पर
ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
तेरे हाथों फ़रेब खाने पर