सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
मैं ने तो बस कहा था कि धड़कन का शोर है
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संग-दिल
ला-इल्मी
यौम-ए-मज़दूर
सारे जज़्बे तिरी चाहत के दिखाई देते
मैं अपने आप को रोकूँ कहाँ तक
ख़ुदी का राज़
कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
हवस
मिरे सीने से लग कर देर तक रोती है तन्हाई
गुनाह
और फिर मोहब्बत में जी के मर के देखा है